राजपूतों की आबादी
राजपूतों की आबादी कम है और राजपूतों में एकता नही है। ये दो मिथ्या धारणाएं राजपूत समाज में बहुत लोकप्रिय हैं।
जब समाज सुधार की बात करते हैं तो उसके लिए समाज की वास्तविक समस्याओं और उसके निवारण का ज्ञान होना जरूरी है। इस दौरान सबसे बड़ी समस्या राजपूतों में जो देखी वो है अपनी समस्याओ की ही सही जानकारी ना होना और राजपूतों की समस्याओं के नाम पर मिथ्या प्रचार पर यकीन करना।
राजपूतों की आबादी कम है और राजपूतों में एकता नही है ये दो धारणाएं वास्तविकता से बिलकुल उलट है। राजपूत संख्या के मामले में देश की सबसे बड़ी जाति है, जनबल के साथ ही बाहुबल और राजनीतिक बल की जो असीमित संभावनाएं राजपूतो के पास है, कोई और जाति इसके आस पास भी नहीं टिकती। अगर राजपूतों की आबादी कम हुई तो फिर ज्यादा कौन है?
इसके अलावा राजपूतों में एकता नही है, ये एक बड़ा भ्रम फैलाया गया। जबकि आपसी सद्भावना, संगठन और संकट के समय एकजुट होने की जैसी भावना राजपूतों में है वैसी किसी और जाति में नही। राजपूतों का तो जन्म ही हमारे पूर्वजों के संगठित होने की चेतना का परिणाम है। राजपूतों की आंतरिक संरचना में ही संगठनवाद निहित है जो किसी और जाति में नही है। इसी के दम पर इस जाति ने हजारों साल तक राज किया है। अपने समाज, कुल और नेता के प्रति समर्पण की जो भावना राजपूतों में है वो और किसी जाति में नही। आज भी राजपूतों में नेता बनना और राजपूतों को गोलबंद करना बेहद आसान है। आज देश में जिस तरह राजपूत जाति बिना किसी प्रयास के एक पार्टी के प्रति लामबंद है ऐसा इतिहास में कभी किसी जाति के साथ नही हुआ और ना होगा। जिस तरह बिना प्रयास और बिना कारण राजपूतों की भीड़ जुट जाती है, जिस तरह समाज बिना कारण अयोग्य नेताओ का भक्त हो जाता है और जिस तरह समाज के नेतृत्व वर्ग में आपस में मेलजोल और सद्भावना होती है, ऐसा किसी और जाति में नही है।
राजस्थान में लोकसभा वाइज राजपूत वोट
(नोट – यह प्रत्येक लोकसभा की न्यूनतम संभव राजपूत वोट की लिस्ट है। मतलब, प्रत्येक लोकसभा में असल वोट इससे ज्यादा ही हैं लेकिन इससे कम तो नहीं ही हो सकते यह पक्का है)
राजसमंद 4 लाख
चित्तौड़ 4 लाख
जयपुर देहात (ग्रामीण ) 4 लाख
जोधपुर 4.25 लाख
बाड़मेर 3.50 लाख
जालोर 3.8 लाख
बीकानेर 2.9 लाख 15 %
झुंझुनू 3 लाख 16 %
सीकर 2.8 लाख
नागौर 3 लाख
उदयपुर 2.5 लाख
भीलवाड़ा 3 लाख 15 %
धौलपुर 2 लाख 80 हजार
पाली 4 लाख
झालावाड़ 3 लाख (सोंधीया सहित ) 15.82 %
चुरू 3 लाख
अजमेर 2 लाख
कोटा-बूंदी 2 लाख 50 हजार 13%
अलवर 1.75 लाख
जयपुर शहर 2 लाख
सवाई माधोपुर 1.9 लाख
बांसवाड़ा 2 लाख
दौसा 1.6 लाख
भरतपुर 1.4 लाख
गंगानगर 1 लाख
राजस्थान में राजपूतों की जनसंख्या कितनी है
इनको जोड़ कर लगभग 64 लाख वोट का आंकड़ा बन रहा है। पिछले चुनावो में कुल वोट लगभग साढ़े 4 करोड़ के आसपास थे। उस हिसाब से लगभग 13% से 15% राजपूत कम से कम हैं। 60 लाख वोट पर आबादी 1 करोड़ होती है। प्रत्येक लोकसभा में न्यूनतम वोट मान कर भी इतनी संख्या बन रही है। हमारा वास्तविक अनुमान इससे 6-7 लाख वोट ज्यादा का ही है। लेकिन अगर सामाजिक संगठनों के लेवल पर सर्वे करा लिया जाए तो संभावना है कि उससे भी ज्यादा वोट निकल कर आएं।
राजस्थान ऐसा राज्य है जहां मीडिया के बजाए राजपूत समाज खुद अपनी आबादी कम बताता है। राजस्थान के विषय में ऐसा माहौल है कि मीडिया आदि में 18% आबादी भी प्रचारित की जाए तो मान लिया जाएगा। लेकिन राजस्थान में खुद राजपूत नेता और राजपूत संगठन मीडिया वगैरह में पता नही क्यों अपनी आबादी बेहद कम कर बताते हैं। हालांकि जो लोकसभा वाइज आंकड़ा बताया जाता है उसे जोड़कर भी राजपूत वोट 12-13% से कम नही बनते।
लेकिन तब भी इन्ही लोगो द्वारा पता नही कैसे पूरे प्रदेश में 6%-8% वोट प्रचारित किया जाता है। इन्हे सामान्य जोड़ करना भी नही आता। यह तो कोई भी सामान्य समझ वाला व्यक्ति मानेगा कि उपरोक्त लिस्ट में वर्णित संख्या में सीधे आधे वोट कर देना संभव ही नहीं है
निष्कर्ष
1950 में सरकारी आंकड़ों के अनुसार छोटी बड़ी सभी तरह की जागीरो पर आश्रित आबादी 30 लाख के आसपास थी जिनमे 80% राजपूत थे। तब से आबादी लगभग 5 गुना बढ़ चुकी है। उस हिसाब से भी लगभग इतना ही आंकड़ा बन रहा है।
जब भी समाज का कोई राजनेता समाज के मंच पर आकर भी यह घोषणा करता है कि उसके क्षेत्र में तो राजपूतों के वोट बहुत कम हैं और वो तो अन्य समाजों के बल पर जीता है। या यह कहता है कि समाज में एकता नही है तब वो अपनी अयोग्यता को समाज पर थोपने का प्रयास करता है। अपने निकम्मेपन का दोष समाज के ऊपर मढ़ने की कोशिश करता है। इस तरह वो समाज के काम ना करने के लिए बहाने बाजी की भूमिका बनाता है।
और इसमें उसकी मदद करता है हमारा सामाजिक नेतृत्व जो बेहद भ्रष्ट है और राजनीतिक नेतृत्व का ही प्यादा है। वो राजनेताओं के इन झूठे दावों का खंडन नही करता। वो ये नही कहता कि पार्टी से टिकट मांगने से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने के वक्त जाति कैसे याद आ जाति है? तब राजपूतों की आबादी कैसे बढ़ जाती है? और जो जाति एक पार्टी एक नेता के पीछे इतनी आसानी से लामबंद हो जाती है उसमे एकता कैसे नही है? वो ना तो समाज की जनसंख्या के आंकड़े रखते और ना ही नेताओ और पार्टी के वजूद के लिए समाज के योगदान के आंकड़े रखते। आम जनता में तो इतनी समझ होती नही। राजनीतिक नेतृत्व के साथ ही सामाजिक नेतृत्व भी दुष्प्रचार करे तो वो इसे ही सत्य मान लेते हैं और ये समाज के मन मस्तिष्क में समाहित हो जाता है।
FAQ
राजस्थान में सबसे ज्यादा जनसंख्या किस जाति की है?
राजस्थान मुख्यतः राजपूत बहुल राज्य है।
राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ी जाति कौन सी है?
जनसख्या की दृष्टि से राजपूत जाती सबसे बड़ी है
क्या राजपूत जाती राजस्थान की राजनीति की बेक बोन है ?
जी हाँ राजपूत जाती को हर जाति के वोट मिलते है ।और हर जाति सहयोग करती है राजपूत जाती की सहयोगी जातिया रावणा राजपूत, चारण , राजपुरोहित, राव राजपूत, भाट , बंजारा, भील ठाकुर, भोमिया, कृषक राजपूत,सोंधिया आदि सहयोगी जातिया है ।। आदि जातियो से साबित होता है की राजस्थान में राजपूत ही हार जीत तय करते है ।।
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