BATTLE OF MAONDA AND MANDHOLI

Jaipur Victory at Maonda and Mandholi

मावंडा मांडोली का युद्ध-:

Battle of Maonda and Mandholi 1767 ईस्वी में पुष्कर से वापस भरतपुर लौटते समय जवाहरमल ने एक लंबा चक्कर लगा कर रेनवाल की तरफ से प्रस्थान करने का फैसला किया ताकि जयपुर की सेना को गच्चा दिया जा सके। इस कारण से जयपुर की फौज जिसका नेतृत्व धुला के राव दलेल सिंह कर रहे थे उन्हें अपनी आर्टिलरी मजबूरन पीछे छोड़नी पड़ी ताकि जल्द से जल्द दुश्मन के नजदीक पहुंचा जा सके।

अतः इस युद्ध की खासियत यह थी कि जयपुर गठबंधन बिना तोपों के लड़ रहा था।कच्छवाहो के समर्थन में भिवानी के राव कुशल सिंह जाटू तंवर, खुंडाना के अमृत सिंह, बर्डोद के राणा अजमेरी सिंह चौहान, पेहल के चौहान और घासेड़ा के बडगुर्जर थे ।

राजपूतों पर रॉब जमाने के लिए पुष्कर यात्रा

Battle of Maonda and Mandholi 18 वीं शताब्दी आते आते आपसी युद्ध , मराठा सेना के उत्तर में छापामार युद्धों और बाहरी ताकतों के लगातार हमलों से झुझने के कारण राजस्थान और उत्तर भारत के राजपूत कमजोर होते जा रहे थे। उधर दिल्ली में बहादुर शाह जफर के नेतृत्व के बाद मुग़ल सत्ता बहोत कमजोर हो चली थी। धीरे धीरे उत्तर में मराठा शक्ति भी शीन होने लगी इसी चीज का फायदा उठा कर सूरजमल और उसका बेटा जवाहर सिंह ने ब्रज चम्बल और दक्षिण हरयाणा के एक बड़े इलाके पर कब्ज़ा कर लिया। इस सफलता से मिले जोश और होंसले से उत्तेजित हो कर भरतपुर के जाट जो कभी मुग़लों और जयपुर राजघराने के चाटुकार भर थे अपना दम ख़म दिखाने के लिए करीब 50 हजार सैनिकों की फ़ौज लेकर जिसमेंउ सके साथ समरु के नेतृत्व में फ्रेंच टुकड़ी,भाड़े पर सिक्ख टुकड़ी, गुज्जर डकैत,और भारी तोपखाना बन्दुके थी लेकर पुष्कर की और बढ़ा।

इस यात्रा का मकसद पुष्कर यात्रा के नाम पर जयपुर राज्य और राजपूतो को नीचा दिखाना था|

जवाहरमल जाट की सेना नामी फ्रांसीसी कमांडर Sombre और Rene Medec की लीडरशिप में थी। यूरोपियन शैली में ट्रेन की गई ये सेना आधुनिक तरीके से जंग लड़ने में माहिर थी जिसका लोहा दिल्ली और आगरा के आस पास के क्षेत्र मान चुके थे। जवाहर को अपनी अनुशासित सेना पर पूरा भरोसा था और उसके फ्रेंच सेनापतियों ने उसे विश्वास दिलाया की भाले लिए महज घोड़ों पर सवार राजपूतों का उनकी आर्टिलरी एक झटके में सफाया कर देगी।

Sombre के पास 350 तोपें थी जिसमे 50 उसने रिजर्व में रखी और बाकी 300 को 100-100 के तीन हिस्सों में इस तरह बांटा की एक डिविजन सेना की मध्य विंग के आगे इस तरह रखी गई की उसका मुंह जयपुर की फौज के ठीक सामने था। बाकी दो डिविजन बाएं और दाएं विंग पर वर्टिकल एंगल से प्लेस की गई थी। इन तोपों के पीछे जाट कैवेलरी और इन्फेंट्री पोजिशन थी। साफ जाहिर था की जयपुर के घुड़सवारों को तीन तरफ से तोपों की गोलीबारी का सामना करना था।

अविरल अवरोध के सामने अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए घोड़ों पर सवार राजपूतों ने ‘जय जय भवानी’ का उदघोष कर सीधा तोपों पर हमला बोला।

गोलों की पहली बौछार से ही तकरीबन हजार राजपूत उसी वक्त बिखर कर शहीद हो गए। लेकिन टुकड़ी ने हार नहीं मानी और उससे पहले की मध्य विंग की तोपें दूसरी volley छोड़ पाती तब तक राजपूत वहां पहुंचने में सफल हो चुके थे। एक प्लाटून ने तुरंत प्रभाव से उन तोपों को अपने कब्जे में लिया जबकि दूसरी ने जाट सिपाहियों पर हमला बोला। ये अटैक इतना भीषण था की तथाकथित ‘ बलवान ‘ प्रजाति भय के मारे जल्द ही मैदान से भाग छूटी। इस पहले इंगेजमेंट में जयपुर के सेनापति राव दलेल सिंह काम आए।

जाटों के हरावल को काटने के बाद राजपूतों ने दाहिनी विंग की तरफ रुख किया। इससे पहले की तोपें कुछ कर पाती, एक शानदार dash के साथ राजपूतों ने वहां पहुंच राइट विंग की आर्टिलरी भी अपने कब्जे में कर ली और समस्त सेना को गाजर मूली की तरह काट डाला।

लेकिन तब तक Sombre को संभलने का समय मिल चुका था। उसने लेफ्ट विंग की तोपों का मुंह राजपूतों की तरफ कर भीषण गोलीबारी शुरू कर दी। युद्ध का ये पहर क्षत्रियों के लिए बेहद घातक सिद्ध हुआ और उनके ज्यादातर बड़े योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए। पर इस भारी नुकसान के बावजूद भी आखिर में जयपुर की सेना बाईं और की तोपों पर भी अधिकार करने में सफल रही।

इस महत्वपूर्ण घड़ी में जब जाटों की हार लगभग निश्चित थी तब Sombre ने जवाहर जाट को मैदान छोड़ने का आग्रह किया। उसके पास 50 रिजर्व तोपें अभी भी शेष थी जिनकी मदद से वह आसानी से जाट राजा को उसकी राजधानी भरतपुर पहुंचा सकता था। चारो तरफ अपने भाई बंधु कटते देख जवाहर जाट जो की पैदाइशी कायर था उसने जंग से भागने का निश्चय किया। पर इस समय तक राजपूतों का क्रोध सातवे आसमान पर था। आंखों में खून सवार वॉरियर्स ने भरतपुर के ताबूत में आखिरी कील ठोकते हुए ना सिर्फ उन पचास रिजर्व तोपों को अपने नियंत्रण में ले लिया बल्कि भरतपुर का छत्र, तिजोरी आदि सारी चीजें भी जयपुर की सेना की लूट में आ गई।

BATTLE OF MAONDA AND MANDHOLI

इस युद्ध मे राजपूतो ने विजय पताका लहराई

Battle of Maonda and Mandholi जवाहर जाट एक गूजर को अपनी जगह छोड़ भाग चुका था। जीत राजपूतों की हुई।पर चीज़ें यहीं नहीं थमी। जयपुर राजा सवाई माधो सिंह प्रथम जो अपने एक छोटे से जाट सामंत के इस दुस्साहस से काफी क्रोधित थे उन्होंने राजपूत सेना को इस विजय पर फॉलो अप करने को कहा। इसके फलस्वरूप राजपूतों ने कुछ ही महीनों बाद हुए कामां के युद्ध में जाटों और उनके भाड़े पर खरीदे गए सिख सेना को एक बार फिर पटखनी दी।

इस तरह राजपूतों ने एक के बाद एक जाटों को पराजित कर उनका अजेय होने का दंभ चकनाचूर कर दिया। भरतपुर राज्य जो की जयपुर की छत्र छाया में रहते हुए फला फूला था वह जवाहर जाट की उद्दंडता की वजह से जिस गति से ऊपर आया उसी गति से तुरंत नीचे चला गया। जवाहर की हत्या कर दी गई और जाट हमेशा के लिए खामोश हो गए।

इसी वजह से राजपुताने में अंग्रेजों से सर्वप्रथम संधि भी जाटों द्वारा ही की गई।

मावंडा मांडोली में वीरगति प्राप्त हुए कुछ योद्धाओं के नाम निम्नलिखित है: दलेल सिंह राजावत और उनके पुत्र एवं पौत्र (तीन पीढ़ी काम आई), पचार के गुमान सिंह शेखावत, सीकर के बुद्ध सिंह शेखावत, धनोता के शिवदास सिंह, मूंडरु के जोध सिंह शेखावत, बागावास के बहादुर सिंह नाथावत, इटावा के नाहर सिंह नाथावत, कलमंधा के महा सिंह राजावत, जोबनेर के बंसी सिंह खंगारोत और उनके तीन पुत्र आदि।

FAQ

माऊंडा और मंढोली का युद्ध क्या था?

माऊंडा और मंढोली की लड़ाई 1767 में राजस्थान में जयपुर के राजपूत शासकों और भरतपुर के जाट शासकों के बीच लड़ी गई लड़ाई थी। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप जयपुर की सेना ने भरतपुर की सेना को परास्त कर दिया।

माऊंडा और मंढोली का युद्ध कहाँ हुआ था?

माऊंडा और मंढोली की लड़ाई वर्तमान राजस्थान के नीम का थाना में माऊंडा और मंढोली गांवों के पास हुई थी।

माऊंडा और मंढोली का युद्ध किसने जीता?

जयपुर की सेना ने माऊंडा और मंढोली की लड़ाई जीत ली।

माऊंडा और मंढोली की लड़ाई में कितने लोग हताहत हुए?

माऊंडा और मंढोली की लड़ाई में हताहतों की संख्या लगभग 25,000 होने का अनुमान है।

                  =====References====
1 ^ Tanwar Rajvansh Ka Itihas By Dr. Mahendra Singh Tanwar khetasa                                                                    2^ Annals and Antiquities of Rajasthan by Col. James Todd 332713
3^ The Rajputana gazetteers – 1880
4^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 256
5^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 255
6^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 255
7^ History of Jaipur by Jadunath Sarkar pg. 256
8^ Sir William Wilson Hunter,Imperial gazetteer of India – Vol V 1908, page 257
9^ R.K. Gupta, S.R. Bakshi, Studies In Indian History: Rajasthan Through The Ages The Heritage Of …, Page 19
10^ R.K. Gupta, S.R. Bakshi, Studies In Indian History: Rajasthan Through The Ages The Heritage Of …, Page 19
Jump up ^ Dr RK Gupta & Dr SR Bakshi:Rajasthan Through the Ages Vol 4 Page 207

Post navigation

Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *