राजपूत शासक राव सातल देव सोलंकी

राव सातल देव निर्मित 582 साल पुरानी टोंक की बावड़ी

टोंक के शासक रहे राव सातल देव सोलंकी

टोंक के राजपूत शासक रहे राव सातल देव सोलंकी जी (1400ई._1471ई.) के समय निर्मित टोंक की बावड़ी व चतुभुर्ज तालाब !जल के संरक्षण का संकल्प मनुष्य ने प्राचीन समय में ही ले लिया था और पीढ़ी दर पीढ़ी यह परम्परा जारी रही। लोक कल्याण के लिए राव सातल देव सोलंकी जी ने टोंक में अनेकों जल प्रबन्धन के उपाय किए थे जिसमे टोंक की बावड़ी व यहां का चतुर्भुज तालाब एक सुन्दर व अनुपम उदाहरण है। सोलंकी वंशजों द्वारा अपने शासन के दौरान (टोडा ) टोडारायसिंह में भी सेकडो बावड़ियो का निर्माण करवाया गया था।

जिसमे हाड़ी रानी का कुंड वर्तमान समय में अनुपम उदाहरण है

राव सातल देव के समय निर्मित 582 साल पुरानी टोंक की बावड़ी

जल के संरक्षण का संकल्प मनुष्य ने प्राचीन समय से लिया था और पीढ़ी दर पीढ़ी यह परम्परा जारी रही । लोग कल्याण के निमित मध्यकाल में बावड़ियां आदि का निर्माण भी बड़े स्तर पर कराने लगे थे। इसी कड़ी में टोंक शहर में भी कुछ कलात्मक बावड़ियों का निर्माण किया गया,जिनमें से अधिकांश बावड़ियां आज जमीदोज हो चुकी है जो कुछ बची है वो भी अपने अस्तित्व को खोती जा रही है। इसी तरह टोंक में बहीर मौहल्ले में एक उत्तराभिमुखी बावड़ी स्थित है | जिसे स्थानीय लोग पहाड़ी की बावड़ी के नाम से जानते है|इसके पास एक छतरी भी विद्यमान है| बावड़ी बड़े बड़े पाषाण शिलाओ से निर्मित की गई है । इसकी जल प्रबन्धन की व्यवस्था सुंदर है इसमें जैसे ही सीढ़ियों से नीचे उतरते है हम आसानी से पानी तक पहुंच जाते हैं और अगर जब पानी कम हो जाता है तब इससे लगा एक कुआं भरा रहता है। जो ग्रीष्म ऋतु में भी पानी से भरा रहता है। इसमें बरमदा आदि हैं जो तत्कालीन समय में राहगीरों के आराम के लिए बेहतरीन स्थान था । परंतु आज यह जर्जर होता जा रहा है।

उक्त बरामदे की पूर्वी दीवार पर ताक में एक बलुआ पत्थर पर शिलालेख अंकित है| काल प्रभाव से इसके अक्षर जाते रहे |वर्तमान में इसके कुछ अक्षर ही पठन योग्य है|पहली बार इस शिलालेख की चर्चा हनुमान सिंघल साहब ने अपनी कृति “टोंक का इतिहास” नामक पुस्तक में की है, उन्होंने इस शिलालेख के हवाले से लिखा है की सवंत 1498 में रामसुख सरावगी अजमेरा(अजमेर) ने वर्तमान बहीर मौहल्ले में टीला तिवाड़ी की बावड़ी के उत्तर में एक बावड़ी यात्रियों एवं पशुओं के लिए खुदवाई जो इस समय पहाड़ी बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध है|यह बावड़ी राव सातल देव के समय बनवाई गई थी।

राव सातल देव टोंक का स्थानीय शासक रहा है इन्होंने टोंक में अनेकों जल प्रबन्धन के उपाय किए थे जिसमें यहां का चतुर्भुज तालाब एक सुन्दर उदाहरण है। इनकी मृत्यु 1471 ई. में टोंक में ही हुई थी ।

उक्त शिलालेख और बावड़ी की पुन: खोज में मैं 21 अगस्त 2021 को निकला और इस बावड़ी तक पहुच गया लेख काफी जर्जर हालत में मिला इसके ऊपर स्थानीय लोगो ने रंग आदि चढ़ा रखा था | मैने इस लेख को उक्त बावड़ी के समीप खेल रहे बच्चो की सहायता से साफ करने की कोशिश की परन्तु सफल नही हो सका इसको बहुत साफ करने से केवल उस समय एक शब्द पढ़ने में आया “राव सातल देव” परन्तु बाद में इसकी कुछ अन्य पंक्तियां भी पढ़ ली गयी परन्तु अभी इस शिलालेख का पूर्ण रूप से पठन नही हो सका है|पूर्ण रूप से पठन में समस्या है की एक तो यह बलुआ पत्थर पर उत्कीर्ण है जो समय के साथ जर्जर होता जाता है दूसरा इस पर रंग आदि करने से लेख के अधिकांश अक्षर जाते रहे | अधिक साफ करने की कोशिश में लेख के अक्षरों को और अधिक नुकसान होगा |बहरहाल मैने इस शिलालेख का पुन: विन्रम पठन करने की कोशिश की है | यह लेख 12 पंक्तियों में लिखा हुआ है जिसकी भाषा संस्कृति लिपि देवनागरी है। इसमें 1-3 पंक्तियों में गणेश स्तुति,3-4 पंक्तियों में सवंत,तिथि आदि 4-5 पंक्तियों में राव सातल देव,सुरजन देव….. आदि के नाम उत्कीर्ण है| आगे की 5-12 पंक्तियाँ दुष्पाठ्य है| इन पंक्तियों में मुख्य प्रयोजन लिखा होना चाहिए परन्तु खेद है की यह वर्तमान में उक्त पंक्तियां पठन योग्य नही है|

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