पाली लोकसभा जातीय आंकड़े (2018)

Pali Lok Sabha-पाली लोकसभा और विधानसभा जातीय आंकड़े

पाली लोकसभा और विधानसभा जातीय आंकड़े (2018).पाली लोकसभा में पाली जिले की 5 विधान सभा और जोधपुर जिले की 3 विधानसभा आती है जबकि पाली की जैतारण-रायपुर सीट राजसमंद लोकसभा में आती है

पाली लोकसभा क्षेत्र जाटों से राजपूत वोट ज्यादा हैँ पाली से 2 राजपूत विधायक भी हैँ तीशरी विधानसभा सीट पर वोटों के आधार मजबूत दावेदारी थी राजपूत उमीदवार की पर एक टिकट कांग्रेस की सयोगी NCP कों देने की वजह से सुमेरपुर विधानसभा से टिकट राजपूत कों नहीं मिला कारण NCP के राजपूत उमीदवार कों टिकट बाली विधानसभा क्षेत्र से मिल गया बाली से बीजेपी की टिकट पर पुष्पेन्द्र सिंह जी राणावत लगातार 4 बार जीते हैँ और पाली लोकसभा क्षेत्र की मारवाड़ जनक्शन विधानसभा सीट से खुशवीर सिंह जी निर्दलीय जीते इस बार पाली मे राजपूतों का राजनीती मे अच्छा दबदबा हैँ पाली जिले का जिला प्रमुख लगभग 99% राजपूत ही होता हैँ जिले से कई प्रधान भी हैँ बहुत राजपूत सरपंच हैँ औसतन सबसे ज्यादा सरपंच हैँ और हाँ पाली लोकसभा क्षेत्र की पड़ोसी तीनो लोकसभा सीटों राजपूतों कों दोनों प्रमुख दलों की टिकट मिलती हैँ इसलिए पाली जातीय समीकरण के हिसाब से दोनों प्रमुख दलों की टिकट गैर राजपूत ले जाता हैँ वरना पाली के राजपूत लोकसभा के लिए भी अपना दावा ठोक देते कुल मिलाकर पाली मे राजपूतों की राजनीती पर पकड़ बहुत अच्छी हैँ पाली लोकसभा का टिकट जाट जातीं के उमीदवार कों मिलता हैँ कांग्रेस की तरफ से पर जमीनी जातिये समीकरण और वोटों के आधार पर दोनों जगह जाट बहुत कमजोर हैँ बीन राजपूतों के एकतरफा सयोग के जाट उमीदवार पाली से कभी नहीं जीत सकता ऐसा होने की उमीद बहुत कम हैँ पाली लोकसभा क्षेत्र से निकट भविष्य मे जाट उमीदवार दावेदारी सायेद ही करे.

पाली लोकसभा जातीय आंकड़े (2018)

पाली लोकसभा और विधानसभा जातीय आंकड़े

कुल वोट – 2085745

राजपूत (भोमिया सहित) – 232472 (जोधपुर – 71832 पाली – 160640)

जाट – 176491 (जोधपुर – 152324 पाली – 24149)

सीरवी – 147098 (जोधपुर – 37900 पाली -109198)

मुस्लिम – 110058 (जोधपुर – 41903 पाली – 68155)

कुम्हार (कुमावत) – 105730 (जोधपुर – 31942 पाली – 73788)

देवासी (रेबारी) – 103392 (जोधपुर – 26280 पाली – 77112)

घांची – 96678

माली – 81634

राजपुरोहित – 71580

ब्राह्मण – 62741

जैन – 58101

रावणा राजपूत – 42805

पटेल (आंजना) – 37747

जणवा – 31304

विश्नोई – 25697

अन्य (चारण,रावत,नाई,वैष्णव) – 124269

अनुसूचित जाति – 370589 (जोधपुर – 145736 पाली – 224853 )

अनुसूचित जनजाति – 207359 (जोधपुर – 63111 पाली – 144248)

नोट – 2009 में परिसीमन में जोधपुर की तीनों जाट बाहुल्य सीट पाली में आ गई उस वक़्त कांग्रेस ने जोधपुर से चंद्रेश कुमारी को टिकट दी बदले में पाली से जाट बाहुल्य का हवाला देकर जाट उमीदवार बद्रीलाल जाखड़ को दी उस वक़्त शम्भू सिंह जी खेतासर निर्दलीय उतरे थे जिसमें वो करीब 1 लाख 8 हजार वोट लेकर आये थे तथा पाली के सीरवी समाज ने उस वक़्त बद्री जाखड़ को चौधरी समाज से समझ कर रिकॉर्ड वोट दिए

इससे पहले पाली एक तरीके से जैन सीट के तौर पर रिज़र्व थी

2014 में मोदी लहर और एन्टी जाट वोट पर राजपूतो ने पीपी चौधरी (सीरवी) को बम्पर वोट दिया और जाट को हराया.2019 में भी जाट उम्मीदवार की करारी हार हुई.पाली बेल्ट सीरवी और जणवा समाज दोनों ही अपने नाम के आगे चौधरी लगाते है पीपी चौधरी वर्तमान सांसद जाति से बिलाड़ा के सीरवी है

सभी जैन जाति से आते हैं

मूलचंद डागा, पुष्प जैन, लक्ष्मीचंद जैन, गुमान मल लोढ़ा, सुरेंद्र कुमार सुराना, मीठा लाल जैन, ,लक्ष्मीलाल सिंघवी, धर्मीचंद जैन, देवकी नंदन पाटोदिया, अमृत नाहटा।

इन सभी नामो में दो बात कॉमन हैं। एक तो ये सभी पाली लोकसभा सीट पर पुराने परिसीमन में कांग्रेस और भाजपा से सांसद या प्रत्याशी रह चुके हैं। दूसरे ये सभी जैन जाति से आते हैं।पाली लोकसभा के बारे में जान लीजिए। हालांकि मीडिया द्वारा जो संख्या अभी उपलब्ध कराई जाती है उसपर मुझे पूरा यकीन नही लेकिन इसके अनुसार भी नए परिसीमन में भी लगभग ढाई से तीन लाख तक राजपूत वोट हैं।

जब से नया परिसीमन हुआ है यहां नए परिसीमन में नए इलाके जुड़े हैं जिनमे जाट भी डेढ़ लाख तक हो गए हैं। सीरवी डेढ़ लाख से कम हैं। हालांकि अब भी राजपूत ही सबसे ताकतवर जाति है। और किसी जाति की आबादी डेढ़ लाख भी नही है। यहां एससी एसटी के अलावा मेड, तेली, पुरोहित, जनवा, कुम्हार, माली जैसी अनेकों अल्पसंख्यक जातियों की आबादी बहुतायत में है जो जागीरदारी व्यवस्था की वजह से राजपूतों के करीबी हैं। नए परिसीमन में ओसिया और भोपालगढ़ जैसी जाट बहुल सीट जुड़ने के बावजूद मेजोरिटी लोकसभा में राजपूतों को चुनौती देने वाला अब भी कोई नही है, ना ही संख्या, ना ही प्रभाव और ना ही स्वभाव के मामले में।

लेकिन पुराने परिसीमन में जब ओसियां और भोपालगढ़ विधानसभा शामिल नही थी तो यह सीट एक तरह से राजपूतों के वर्चस्व के लिए ही बनी हुई थी। यहां ना तो कोई अन्य जाति संख्या के मामले में राजपूतों से आधी भी थी और ना सामाजिक प्रभाव के मामले में। ये सीट आरक्षित भी नही थी।

इस सीट पर जैन वोट 1% भी नही थे और बनिया वोटर 3% से भी कम। लेकिन यह सीट बनिया बल्कि उसमे भी जैनों के लिए आरक्षित थी। भाजपा और कांग्रेस दोनों से लगातार कई दशकों तक उपरोक्त वर्णित जैन प्रत्याशी चुनाव लड़ते और सांसद बनते रहे।

पूरे देश में किसी भी देहात बाहुल्य सीट का ऐसा उदाहरण और कही नही मिलता जहां 21वी सदी तक बनिए या जैन चुनाव लड़ते रहे वो भी पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से। पाली लोकसभा में 2009 से पहले तक कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल दोनो से जैन प्रत्याशी ही चुनाव लड़ते रहे। पाली लोकसभा को जैन के लिए फिक्स सीट माना जाता था भले ही उनकी कुल आबादी 1% भी नही थी। पूरे देश में ऐसी कोई शहरी आबादी बाहुल्य सीट भी नही थी जहां जैन या बनिए नेताओ का ऐसा वर्चस्व था।

इसका एकमात्र कारण यहां का राजपूत समाज था। यहां के सामाजिक समीकरण इस प्रकार थे कि यहां राजपूतों के अलावा कोई और जाति चुनाव लड़ने की हालत में नही थी। यहां राजपूतों के अलावा किसी और जाति की आबादी 7-8% से ज्यादा नही थी और सामजिक एवं आर्थिक मामले में इतनी पिछड़ी थीं कि लोकसभा छोड़िए विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए भी सोचना पड़ता था।

इसलिए यहां देशभर से जैन चुनाव लडने के लिए आते थे। उनके लिए यह सबसे उपयुक्त सीट थी क्योंकि यहां कोई और चुनाव लड़ने वाला ही नही होता था। कायदे से यह सीट राजपूतों के लिए बनी है और थी। कांग्रेस और साथ ही प्रमुख विपक्षी दल जनता पार्टी, जनता दल या भाजपा से भी राजपूतों को ही टिकट मिलना चाहिए था। लेकिन यहां का राजपूत समाज खुद चुनाव ना लड़कर इन जैन नेताओ को चुनाव लड़ाता था। यह लोकसभा सिर्फ राजपूतों के कारण जैन समाज की सीट थी। किसी और जाति का जरा भी प्रभाव होता तो ये सीट कभी जैनों की सीट नही बन पाती। कांग्रेस और भाजपा से टिकट ना मिलने पर जैन प्रत्याशी निर्दलीय भी चुनाव लड़ते थे और पैसा खर्च कर राजपूत ठाकुरों के दम पर अच्छे वोट लेकर आते थे।

यहाँ का राजपूत समाज पुराने जागीरदारों/ठिकानेदारों के नेतृत्व पर निर्भर समाज था जिसमे पढ़ा लिखा मध्यवर्ग पैदा नही हुआ था। इसलिए अपनी छोटी मानसिकता के कारण राजपूत समाज ने खुद नेतृत्व पैदा करने के बजाए बाहर से आए जैनों को अपनी ‘सुविधानुसार’ चुनाव लड़ाना श्रेयस्कर समझा। पिछले पांच दशकों में 13 चुनावो में मात्र दो बार निर्दलीय या बसपा के टिकट पर राजपूतो ने चुनाव लड़ा जिसमे एक बार सीरवी जाति के दीवान माधो सिंह और एक बार जोधपुर के धनाढ्य शंभू सिंह खेतासर रहे हैं। पूरे देश में राजपूतों के लिए सबसे उपयुक्त सीट पर भाजपा या कांग्रेस ने आज तक यहां राजपूतों को टिकट नहीं दिया जहां दोनो पार्टियों से राजपूतों का टिकट होना चाहिए था। नए परिसीमन में भी भाजपा ने पूरे देश में डेढ़ लाख वोट वाली सीरवी जाति को टिकट देना श्रेयस्कर समझा जिन्होंने खुद कभी सांसद बनने की उम्मीद नहीं करी थी। भाजपा ने यह हिम्मत भी राजपूतों के दम पर की है।

जालोर लोकसभा वाली पिछली पोस्ट पर लोगो ने राजपूत सांसद होने ना होने पर ही चर्चा केंद्रित रखी। हालांकि संसार के 7 अजूबों में इस तथ्य को स्थान मिलना चाहिए कि पिछले 12 चुनावो में पाली से ना केवल कोई राजपूत सांसद नही बना बल्कि किसी प्रमुख पार्टी से टिकट तक नही मिला। लेकिन इस पोस्ट का उद्देश्य इस बात पर रूदाली गान करना नही कि राजपूत सांसद क्यों ना हुआ। राजपूत सांसद होते भी तो राजपूतों का भला करने के की बजाए नुकसान ही करते।

ना ही जैनों या बनियों से कोई शिकायत है। ये हमारा सबसे करीबी और शरीफ समुदाय है। हालांकि 1947 के बाद के विभिन्न बनिए नेता जो 1947 से पहले रियासतों में राजपूतों से भी ज्यादा ताकतवर होते थे, उनसे लेकर पत्रिका या भास्कर जैसे मीडिया समूहों के मालिकों तक किसी ने भी राजपूतों के प्रति सद्भावना दिखाने के बजाए शत्रुता पूर्ण व्यवहार ही ज्यादा किया है।

इस पोस्ट और ऐसी पोस्टों का उद्देश्य समाज के इतिहास, स्वभाव, राजनीतिक समझ से लोगो को परिचित कराना है जिससे समाज में विमर्श पैदा हो और सही दिशा में सुधार के प्रयास हो ना कि समाज सुधार के नाम पर मात्र भाषणबाजी की जाए। जब तक अपने समुदाय का ज्ञान ना होगा तब तक सामुदायिक चेतना का विकास नही होगा और जब तक अपने समुदाय की राजनीति का ज्ञान और उसपर विमर्श नही होगा तब तक राजपूत समाज में राजनीतिक चेतना का विकास नही होगा। जब तक राजनीतिक चेतना विकसित नही होगी तब तक समाज अपने भले के लिए नेताओ को अपने इशारे पर चलाने की बजाए नेताओ के भले के लिए उनका गुलाम बनता रहेगा।

यह राजपूत समाज और उसके संगठनों एवं सिविल सोसायटी के बौद्धिक, राजनीतिक, सामाजिक समझ का सबसे नग्न उदाहरण है कि राजपूतों के कारण एक पूर्णतया देहाती लोकसभा सीट 21वी सदी की शुरुआत तक जैनों की सीट मानी जाती रही लेकिन राजपूतों को इसका क्रेडिट मिलना तो दूर इसपर चर्चा तक नही होती। वो तो मात्र डेढ़ लाख जाट जुड़ने से राजनीतिक दलों का नजरिया बदला नही तो आज भी जैन ही यहां से चुनाव लड़ रहे होते।

FAQ

पाली विधानसभा सीट कितनी है ?

पाली लोकसभा में पाली जिले की 5 विधान सभा और जोधपुर जिले की 3 विधानसभा है जबकि पाली की जैतारण-रायपुर सीट राजसमंद लोकसभा में आती है

पाली जिले के विधानसभा क्षेत्र कितनी है ?

पाली लोकसभा में पाली जिले की 5 विधान सभा और जोधपुर जिले की 3 विधानसभा आती है .पाली, बाली, मारवाड़ जंक्शन, सोजत, सुमेरपुर व जोधपुर की भोपालगढ़, ओसियां व बिलाड़ा विधानसभा है पाली लोकसभा में आती है.

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