जालोर सिरोही लोकसभा

जालोर सिरोही लोकसभा

आप पूरे देश में कोई ऐसी लोकसभा सीट जानते हैं जहां किसी जाति के साढ़े 3 लाख से ऊपर वोट हो लेकिन वहां आज तक उस जाति के किसी व्यक्ति ने चुनाव ना लड़ा हो?

जालोर ऐसी ही लोकसभा सीट है जो पूरे राजस्थान में सबसे बड़ी राजपूत आबादी वाली लोकसभा है। यहां राजपूत और भोमिया राजपूत मिलाकर कुल 3.5 से 4 लाख वोट हैं। किसी और जाति के दो लाख वोट से ज्यादा नही हैं।पार्टियां जालोर में राजपूत ,भोमिया राजपूत दोनो का आपस में टकराव होने के कारण भी टिकट की कोई दावेदारी नही करता .ऐसा नही है कि यहाँ से राजपूत चुनाव नही जीत सकता आराम से जीत सकता है पर प्रमुख पार्टियां हमेशा अनदेखी कर रही है.

जालोर सिरोही लोकसभा

नारायण सिंह देवल स्थापित हो चुके है।।अन्य दावेदार – समरजीत सिंह लेकिन वो भी भोमियो की वजह से हार रहै है।। सुराणा कांड मे राजपूत भोमियो मे समन्वय बैठाने का अच्छा मौका था.राजपूतों के परिप्रेक्ष्य में सामंतवाद की बहुत बाते की जाती हैं लेकिन यह इकलौता क्षेत्र हैं जहां सामंतवाद अपने श्रेष्ठ रूप में रहा है। यह इकलौता क्षेत्र हैं जहां की सामाजिक व्यवस्था पर आज भी राजपूतों का बहुत असर है। 1947 के कई दशक बाद तक भी राजपूत दरबारियों, ठिकानेदारों और स्थानीय ठाकुरों की स्थिति सांसद, विधायक और ब्लॉक प्रमुख की तरह रही।

हालांकि इसमें यहां के राजपूतों की सूझबूझ या पराक्रम का कोई हाथ नहीं है। बल्कि यहां की डेमोग्राफी का असर है। इस क्षेत्र में कोई अक्रामक मानसिकता की जाति नहीं मिलती। ना यहां जाट हैं, ना गूजर और ना मीणा। विश्नोई ही हैं जो जालोर जिले के पश्चिमी हिस्से में ही ज्यादा मिलते हैं। यहां राजपूतों के बाद कल्बी और रबाड़ी जाति की संख्या है जिनके 2 लाख से भी कम वोट हैं। लेकिन ये दोनो जाति संगठित बेशक हैं लेकिन नरम स्वभाव की हैं। कलबी जाति कुनबी पटेल जाति समूह की ही उपजाति है । यह जाति सीरवी और आंजना की तरह राजपूतों से किसान बने लोगो की जाति है। उत्तरी गुजरात में पहले इस जाति के लोग राजपूतों की तरह नाम और वेशभूषा रखते थे। रेबारी बेहद पिछड़ी और अभी तक शरीफ जाति है।रेबारी ओर राजपूतो दोनो जातियो की अछे रिस्ते है।दोनो में एक दूसरे के प्रति सम्मान है

इस क्षेत्र में बाकी जातियां बेहद पिछड़ी या अल्पसंख्यक हैं। जमींदार वर्ग पर आश्रित छोटी अल्पसंख्यक जातियों की बड़ी आबादी है। एससी एसटी की बड़ी आबादी है। ओवरऑल इस क्षेत्र की सब जातियों में सीधापन और सामाजिक सद्भाव है इसलिए यहां की राजनीति में पहले बेहद अल्पसंख्यक जैन और ब्राह्मण समुदाय के नेताओ का भी दबदबा रहा है।

ये सीट लंबे समय तक आरक्षित रहीं और यहां के समाज के सीधेपन का लाभ उठाकर पंजाब के बूटा सिंह यहां से कई बार सांसद रहे। भाजपा ने दक्षिण के बंगारू लक्ष्मण और उनकी पत्नी तक को यहां से चुनाव लड़ाया। लेकिन पिछले 3 चुनावो से यह सीट सामान्य है। यहां के जातिगत, सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थिति के अनुसार यह सीट सामान्य होने पर राजपूतों की बपौती होनी चाहिए थी। लेकिन आरक्षित होने से पहले के दौर में भी इस सीट पर बेहद अल्प संख्या वाले बनिए, कायस्थ और ब्राह्मण बाहर से आकर चुनाव लड़ते और जीतते थे। उस समय यहां के समाज में राजपूतों का एकतरफा दबदबा होते हुए भी राजपूतों ने यहां राजनीतिक दबदबा बनाने की कोशिश नही की और अल्पंख्यक जातियों के बाहरी प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाते और जिताते रहे।

2009 में सामान्य होने के बाद तीन चुनाव हो चुके हैं और जालोर सिरोही लोकसभा तीनो चुनाव में एक भी राजपूत प्रत्याशी आज तक नही खड़ा हुआ है। जबकि राजपूतों से कम आबादी और सामाजिक प्रभाव वाली कलबी, आंजना और रबाडी समुदायों के प्रत्याशी चुनाव लड़ चुके हैं। ऐसा उदाहरण पूरे देश में कही देखने को नहीं मिलता जहां किसी गैर राजपूत जाति की आबादी 20% हो और वो कभी चुनाव भी ना लड़े।

गौरतलब है कि इसी राजस्थान में जाटों की आबादी जहां भी 3 लाख भी हैं वहां दोनो पार्टियों से जाटों का टिकट रहता है। भाजपा जाटों को कोर वोटर ना होने के बावजूद 8 टिकट देती है जिनमे अधिकतर अगल बगल की सीट होती हैं। जबकि इन सीटों पर जाटों को टिकट देना भाजपा के लिए जरूरी नहीं है।

लेकिन फिर इसी तर्क से भाजपा के कोर वोटर राजपूतों को जोधपुर और राजसमंद के साथ बाड़मेर, जालोर, पाली और चित्तौड़ से टिकट क्यों नही मिलता? कम से कम जालोर सिरोही लोकसभा और पाली से तो मिलना ही चाहिए।

शेखावाटी और नागौर में तो गैर जाटों का भी दावा बनता है लेकिन पाली और जालोर में राजपूतों के अलावा किसी और जाति का मजबूत दावा नही बनता। यहां के जातिगत समीकरण, सामाजिक परिस्थिति, कोर वोटर होने और अन्य सीटों पर अपने हितों का बलिदान देने के कारण कम से कम भाजपा का टिकट बाय डिफॉल्ट राजपूतों को मिलना चाहिए। लेकिन यहां भाजपा कलबी और सीरवी जैसी जातियों को टिकट देकर सांसद बनाती है जिनका अब से पहले कभी कोई सांसद नही बना था और ना ही इन्होंने कभी सांसद बनने के सपने देखे थे। इसके विरोध में इन दोनो सीट पर राजपूत कांग्रेस से भी टिकट लेकर नही आया और भाजपा को अंधसमर्थन किया।

आज कलबी और सीरवी जैसी अल्पसंख्या वाली जातियों से भी सांसद बन पाए हैं इसमें राजपूतों के बलिदान का बड़ा योगदान है। अगर इन सीट पर राजपूतों जैसी संख्या या प्रभाव जाट अहीर ब्राह्मण गूजर जैसी किसी भी जाति का होता तो कलबी और सीरवी जैसी जातियां चुनाव लडने की सोच भी नही सकती थी। लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि राजपूत समाज इस बलिदान का भी क्रेडिट नही ले पाता।

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