आज बात करेंगे हाडौती के हिंडोली सीट की जहाँ पर अशोक चाँदना चुनाव लड़ते है।
इस सीट पर एक बार bjp से वरिष्ठ महिपत सिंह जी ने चुनाव लड़ा दूसरी बार उनके बेटे ओमेंद्र सिंह हाड़ा ने लड़ा। पर दोनो बार हार हुई।महिपत सिंह बीजेपी मे अच्छे पकड़ वाले नेता माने जाते है । महिपत सिंह जी बीजेपी निष्कासित नेता है । जिस तरह से बूंदी जिले मे राजपूतों की राजनीति खत्म की है सायेद कोई दूसरी जाती की हो । क्युकी एक तो राजपूत कोर वोटर रहा है बीजेपी का ओर हमेशा से बीजेपी क पक्ष मे वोट करता आया है फिर भी राजपूतों क वोट की वैल्यू नहीं समझी जा रही है .
हिंडोली विधानसभा पर जातीय समीकरण 2023
माली 45 हजार है ।जो सबसे ज्यादा है ।
वही गुज्जर 40 हजार के आसपास है। गुज्जरो की जनसख्या दूसरे नम्बर पर है।
वही मीणा भी 35-38 हजार के बीच इस विधानसभा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है ।
इसके बाद यहाँ राजपूत 30 हजार के आसपास है।
ब्रामण इस विधानसभा में 10 हजार के आसपास है।
Sc जाती यहाँ 45-50 हजार के बीच है जो महत्वपूर्ण भूमिका में है ।
राजपूत ओर माली गठजोड़ की वजह से यहाँ राजपूत उम्मीदवार की जितने की संभावना रहती है।
2023 में चुनावी जाजम बिछ चुकी है क्या इस बार कांग्रेस का गढ़ bjp जीत पाएगी ।।अब देखना य होगा bjp किसको टीकीट देती है ।।
हिंडोली विधानसभा में इस बार 21000 मतदाता बढ़े है । 2013 में महिपत सिह हाड़ा ने कड़ी टक्कर दी थी । उसमें 19 हजार वोट से हार गए उस टाइम 5371 हजार वोट नोटा में डले ।
2008 में देवली उनियारा सीट छोड़कर आये प्रभुलाल सैनी ने जीत दर्ज की हरिमोहन शर्मा को हराया।
अगर पुराने इतिहास में जाये तो सज्जन सिंह पारा हिंडोली ने पहले विधायक जीत दर्ज की जो राजपूत परिवार से थे ।इनोने चुनाव राम राज्य परिषद से लड़ा था।
1962 में य सीट एसटी की हो गई थी ।इस टाइम यहाँ पर गंगा सिंह विधायक चुने गए ।
1967 में परसीमन में य सीट सामान्य हो गयी ।और जनसंघ की टिकट पर 449 के अंतर से केसरी सिंह हाडा विद्यायक बने ।य पहले बूंदी विधानसभा से भी विधायक रहे थे । केसरी सिंह बूंदी दरबार के भाई थे।
1993 में शांति धारीवाल ने यहाँ से चुनाव लड़ा ।ओर य कड़ा मुकाबला हुआ ।और महज 15 वोट से शांति धारीवाल ने जीत दर्ज की ।
1998 में रमा पायलेट ने यहाँ पोखरलाल सैनी को हराया ।ओर 15 हजार वोटो से जीत दर्ज की ।
2003 में हरिमोहन शर्मा ने बीजेपी के नाथू लाल गुजर को हराया ।
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